मजदूर
उर में भर फौलाद एक श्रमिक चला है काम पे।
तोड़ेगा पर्वत विशाल पत्थर होगा किसके नाम पे।।
विकाशवादी देश हुआ क्या दुर्दशा है मजदूर की।
फटे पुराने कपड़े तन पर क्या पकेगा आग पे ।।
कितनी अदभुद तेरी रचना ताजमहल के जैसी है।
सोच समझकर हुनर दिखाना बट्टा लगे ना साख पे।।
कितनी ऊंची बिल्डिंग तानी कितने बड़े बने हैं पुल।
हिली अगर 4नींव भी थोड़ी तेरी बन आयेगी जान पे।।
कहां उचित सम्मान मिला कहां हुआ पूरा भुक्तान।
शहर बसाने आया था वो फिर लौटा अपने गांव पे।।
खून पसीना बहा श्रमिक का तब ये दुनियां बन पाई।
उसका भी उपकार करो कुछ आंच ना आएं मान पे।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)
9479611151