‘मजदूर’
‘मजदूर’
मैं मजदूर हूँ थोड़ा मजबूर हूँ
घर द्वार को छोड़ छाड़कर
सबसे दूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ…..
खाता रूखी सूखी हूँ मैं
भर भर पीता लोटा पानी
सुबह से शाम तक खटता हूँ मैं
कहलाता अज्ञानी.
थककर चूर हूँ
मैं मजदूर हूँ.
घर द्वार को छोड़ छाड़कर
सबसे दूर हूँ।
सिर पर ढोता ईंट और गारा
कंधे पर बोझ उठाता सारा
आलस से दूर हूँ
मैं मजदूर हूँ
घर द्वार को छोड़ छाड़कर
सबसे दूर हूँ।
बच्चे -बूढ़े घर मेरे भी
हैं सब वो चितेरे मेरे भी
उनसे दूर हूँ
मै मजदूर हूँ
घर द्वार को छोड़ छाड़कर
सबसे दूर हूँ।
बिन मेरे कोई चले न काम
करता नहीं हूँ मैं आराम
ईश्वर का नूर हूँ
मैं मजदूर हूँ
घर द्वार को छोड़ छाड़कर
सबसे दूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ….मैं मजदूर हूँ
मैं…………मैं………।
गोदाम्बरी नेगी