मजदूर
हाथ हो गया अब मेरा पत्थर का
चट्टान को भी झटके से तोड़ दू।
अंगार से अब डर नहीं लगता
मिलाकर आँखे अंगार का भी मुख मोड़ दूँ।
कुदरत ने मुझपर बेतिहाँ सितम ढाएँ है
अब तो हर सितम सामना हँसते हुए कर लूँ।
मै मजदूर हूँ मेहनत से नहीं डरता
चाहे करना पड़े कितना भी मेहनत
मैं पीछे नहीं हटता ।
देखना है तो देख लो कभी आजमा कर
दिन रात मेहनत मे गुजार दूँ।
~ अनामिका