मजदूर
मजदूर
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हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही।यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया ।आज भी हमारे देश का मजदूर हमारे देश का मजदूर जिनका मूलभूत जरूरतों के दलदल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं ।परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं।जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं।सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा रहा है।
कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है ,वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी।
अपने घरों को पहुंचने की कोशिश में जाने कितने मजदूरों ने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। भूख प्यास से तड़पते मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल चलकर कई कई दिन में अपने घर पहुंचे अनेक लोग अव्यवस्थाओं के कारण अमान्य व्यवस्था के बीच किसी तरह घर पहुंचने में कामयाब हो पाए ।कोई साइकिल से कोई रिक्शा से ,कोई ठेला से ,कोई बाइक, स्कूटी से अपनी और परिवार की जिंदगी की जंग लड़ते हुए किसी तरह घर पहुंचने में कामयाब भी हुए तो उनके सामने रोजी-रोटी की समस्याएं भी उनके सामने रोजी-रोटी की समस्याएं भी भी जैसे उनका इंतजार कर रही थी।सरकारों के द्वारा दिए हुए इंतजाम नाकाफी साबित हुए ।यह अलग बात है तमाम लोगों ने संस्थाओं ने सरकारों ने भरसक प्रयास किया इन सबके बावजूद सारे प्रयास नाकाम ही रहे।
मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकारों को चरणबद्ध ढंग से योजना बनाने और उसके सख्ती से क्रियान्वयन की जरूरत है।जब तक राजनीतिक पैंतरे बाजी चलेगी मजदूरों की दशा में सुधार हो पाना दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। इसमें उद्योगपतियों समाजसेवी संस्थाओं प्रबुद्ध नागरिकों का सहयोग लिया जाना चाहिए।सरकारों को मजदूरों की दशा सुधारने के लिए संकल्प बद्ध होकर कदम उठाने होंगे ।जब तक ऐसा नहीं ऐसा नहीं होगा तब तक मजदूरों की दशा में सुधार नहीं होगा और मजदूर वर्ग यूँ ही घुट घुट कर जीवन जीने के लिए मजबूर रहेगा ।
■ सुधीर श्रीवास्तव