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11 Jun 2020 · 2 min read

मजदूर

वह शानदार , शमशीर है,
तन से दिखता फकीर है।
फौलाद सा सीना है उसका,
और पत्थर का शरीर है।

इस अंधविश्वास से निकलो भइया की मजदूर लाचार है।

मजदूर ना तब मजबूर था ,
ना मजदूर अब मजबूर है।
ना नाजुक उसको समझा ,
वो औलाद-ए रघुवीर है।

विकसित बन रहे भारत पर ,
अब सबको गुरूर है।
क्या कभी सोचा है तुमने ,
भारत का अर्धशरीर मजदूर है।

पिज़्ज़ा पनीर जिसका आहार है,
फिर शरीर पर कसरत का प्रहार है।
मजदूर के बच्चों की मुस्कुराहट देखो ,
दूध रोटी भी उपहार है।

ना नींद की गोली पर खर्चा
ना ब्लड प्रेशर बेहाल है।
थकावट भरा तन
बढ़िया नींद का हकदार है।

उनके लिए
न कोई दिन रविवार है
बस थोड़ा दर्द का प्रहार है,
जब निकलती रक्तधार है।
ईटों की बिंदिया और मिट्टी का श्रृंगार है।
मजदूरी जिसका रोजगार है,
वह महिला जोरदार है।

जिनकी वजह से
यहां कारखानों की भरमार है,
यहां मॉल का प्रचार है
पर इनको शहरों से ना प्यार है।
पांव के छाले होते हुए भी गांव जाने को बेकरार हैं।
क्योंकि गांव में इनका अपना घर-बार है।

आप बड़े आशियाने में रहते हैं
फिर भी कर्जदार हैं।
कैसे चुका पाओगे कीमत उनकी
घर की हर ईट मजदूर के पसीने से दागदार है।
सर जी की हथेली की लकीरों की कामयाबी में
मजदूर भी हकदार है।

इस लोकतंत्र में वह भी हिस्सेदार है।
उसके लिए तो हवाई यात्रा- मेट्रो जैसे ऐशो आराम बेकार है।
नेताजी तुम खेलो अपनी राजनीति,
उनके कदमों में आज भी शेरो जैसी रफ्तार है।

इस अंधविश्वास से निकलो भाइयों की मजदूर लाचार है।

✍?…..करिश्मा चौरसिया

Language: Hindi
4 Likes · 5 Comments · 624 Views

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