मजदूर
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किया जो तुमने निवेदन ये जब जमाने से ।
बढ़ेगा रोग नहीं दुरियाँ बनाने से।।
मिला है दान मगर कह रही हैं सरकारें ।
सुधरती अर्थव्यवस्था शराबखाने से।।
शराबियों से हुई पार दूरी दो गज की।
कदम बहक गये पीते ही लड़खड़ाने से।।
रखे हैं पीठ पे सामान चल रहे मीलों।
भटकते फिर रहे मजदूर अब ठिकाने से।।
मिलेगी कब ये हमारी सहायता राशि।
कई दिनों रहे मुहताज दाने दाने से।।
सिरों पे छत नहीं पैरों में पड़ गये छाले।
थका बदन भी सरेराह जख्म खाने से।।
न जाने कोप ये कब तक रहेगा कुदरत का।
खुदा रहम करे अब मान जा मनाने से।।
बढ़ी है ज्योति लगातार मृत्यु दर भारी।
मिटेगा रोग नहीं आँकड़े मिटाने से।।
✍?ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा
(म.प.)