मजदूर, मजदूरनी और उनके बच्चे
लॉकडाउन में 20 लाख से अधिक
मजदूर वापस घर आये
घर में भी मजदूर और बाहर भी,
हम और आप भी,
बे-सहारा और अनाथ भी,
लंगड़े-लुलहे और दर्दनाक भी ।
पटना फुट पाथ पर सोते
या महानगरों के स्ट्रीट लाइटों में
पुरुषों को मोहती अंदाज में,
कामगार लड़कियाँ !
मर्मान्तक पीड़ा लिए जीती,
मजदूरनी !
फिर ये क्या है बिहारी होने की छटपटाहट लिए
दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता में सरेआम छीना झपटी,
देश की पौने भर आबादी बेरोजगार !
बिहार, यूपी, झारखंड, छतीसगढ़ के जिलों में
मजदूरी कर रहे,
और है घर से त्यक्त,
चाह और इच्छाओं के मध्य फंसकर
अपना लक्ष्य तक भूल रहे,
आह ! मजदूर दिवस ?
याह मजबूर दिवस !