मजदूर का बदन
आज मजदूर दिवस की अवसर पर सभी मजदूर भाईयों को समर्पित मेरी कुछ पंक्तियां :-
“मजदूर का बदन”
चिलचिलाती धूप हो
या हो भींगता हुआ तन
सहनशील है बड़ा
मजदूर का बदन
आंखों में चिंगारियां
मन में नया उमंग
पसीने से तर-बतर
रहता जो तन
जोशीला है बड़ा
मजदूर का बदन
ना है कोई वर्दी
ना कोई यूनिफॉर्म
श्रृंगार है तो केवल
है उसका श्रम
जिसकी है पूंजी
बस उसका तन
थकता नहीं है
मजदूर का बदन ।
✍️ समीर कुमार “कन्हैया