मजदूरों के साथ
मजदूरों के साथ युगों से
हो रहा है सियासी खेल
राजनीति बन गई अब
पूँजीपतियों की रखैल
संसद, विधानसभाओं
में धनिकों की भरमार
फिर कैसे हो सकेगा अब
श्रमिकों का यहाँ उद्धार
अब नहीं करता कोई बढ़ती
महंगाई का संसद में जिक्र
सांसदों में दिखती नहीं आम
आदमी की पीड़ा की फिक्र
जन जन को गंभीरता
करना होगा अब मतदान
ताकि संसद में कायम रहे
मजदूरों, लाचारों की जुबान
सबको एकजुट हो करनी होगी
मजदूरों के कल्याण की बात
तभी सुरक्षित रह पाएंगे देश
में मज़लूमों के दिली जज़्बात …