मजदूरों की घर से दूरी – कोरोना काल में लिखी रचना
मजदूरों की घर से दूरी
मजदूरों की घर से दूरी , ऊपर से ये कैसी मजबूरी
कोई राह दिखाओ तो , घर तक हमें पहुँचाओ तो
दो वक़्त की रोटी मिल जाये , और घर जाने को वाहन
पीर हमारी सुन लो कोई, घर तक हमें पहुँचाओ तो
भाई छोटे , बहन छूटी , रिश्तों का संसार भी छूटा
इस भयावह त्रासदी में , इंसानियत की राह सजाओ तो
पैरों के छले फुट – फूटकर , पीर भयावह बन रहे
बच्चों की भूखी अंतड़ियां रोयें, कोई भूख मिटाओ तो
टुकड़े – टुकड़े यह तन होकर, सड़कों पर बिखर रहा
अपने ही वतन में हम रहते, पराया न हमें बताओ तो
पीर सही हमने जो दिल पर , उसको कैसे भुलाएँगे
वोट दिया था हमने तुमको, हमें यूं न झुठलाओ तो
लखपतियों को प्लेन में बिठाकर , लाती हमरी सरकार
हम भी हैं इस देश के बच्चे , हमें यूं न न लजाओ तो
अब हमें जागना होगा, खुद को अपना खुदा बनाना होगा
राजनीति का मोहरा थे हम , अब नया राष्ट्र बनाना होगा
राजनीति के ठेकेदारों को , अब हमें सबक सिखाना होगा
इन सत्ता के लोभियों को , अब कुर्सी से गिराना होगा
भूख , प्यास और मौतों का बदला इनसे लेना होगा
नेताओं की कुटिल चालों का माकूल जवाब बनाना होगा
मजदूरों की घर से दूरी , ऊपर से ये कैसी मजबूरी
कोई राह दिखाओ तो , घर तक हमें पहुँचाओ तो
दो वक़्त की रोटी मिल जाये , और घर जाने को वाहन
पीर हमारी सुन लो कोई, घर तक हमें पहुँचाओ तो