मजदुर हूं मै,मजबुर नही
“जीवन कण्टक भरा है मेरा
ना हार मै कभी मानने वाला
हर दर्द मै सहके जी लेता हू
मजदुर हू मै, मजबुर नही ,
सिमटके रह जाती है कहानी
अक्सर यहा पर किताबो मे
घुमता फिरता मिल जाता हु
मै अक्सर चुनावी दावो मे,
ढाल बनाके नाम को मेरे
सत्ता तो हासिल कर जाते है
शायद भूल हमे वो जाते है
मजदुर हूं मै , मजबुर नही ,
मानव अधिकारो मे शामिल हु
पर अधिकार नही कुछ भी मेरे
दो वक्त कि रोटी मे भी हिस्सा
हडपते यहा है सब शाम- सबेरे
व्यथित हू , पर क्रुर नही
मजदुर हू मै , मजबुर नही”