मचले छूने को आकाश
दोस्तों का साथ देता हरेक को अनूठा अहसास
मन प्रफुल्लित होके मचले छूने को आकाश
सुर्ख गुलाब को लेकर यूं रखते सब जुदा ख्याल
पर दूजों के मन कुरेद वो करते विविध सवाल
हो फिजा कैसी भी राहें लगतीं सब जानी जानी
युग युग से दोस्ती का मर्म गाते रहे ज्ञानी ध्यानी
बातों में ही पल सरकें नहीं रहे घड़ी का ध्यान
चुटकी में मिल जाता हर मुश्किल का समाधान
जब वज़्म में छिड़ जाती बीते लम्हों की बात
पता न चलता कैसे बीत गई शीत की लंबी रात
हमजोली, हमनवां शब्दों में गुंथी है ऐसी प्रीति
यारों को भाती सदा अपने हमकदम की रीति
कैंपस की यादें मन को जब तब यूं मथ जातीं
जैसे कोयल बेमौसम ही अपनी कूक दुहराती
दिल में गहराई तक अंकित कुछ मित्रों की याद
जन्म जन्म तक रहेगा वो हर मानस में आबाद
जहां कहीं भी बस रहे हो अपने हित और मित्र
उनके कलरव में दिखेगा अपना भी कोई चित्र
सब कुछ ही मंगलमय रहे हित मित्रों के साथ
एकाकीपन में प्रभु के सामने उठते दोनों हाथ
जिनके साथ में गुजरे हैं जीवन के कुछ साल
गप्प, तमाशा, बहस में कभी कभी मचा बवाल
उन सबसे यही आग्रह करता है दिल से उमेश
इस पन में माफ़ करो यदि लगी कभी हो ठोस