मगर तुम न आये मगर तुम न आये
खड़े थे सनम हम निगाहें बिछाये
मगर तुम न आये मगर तुम न आये
कभी रो दिये तो कभी मुस्कुराये
मगर तुम न आये मगर तुम न आये
नहीं रात दिन का रहा भान हमको
न अनुचित उचित का रहा ज्ञान हमको
हुये बावरे प्रीत में यूँ तुम्हारी
चली जान जाये न देखो हमारी
तुम्हें याद कर होश अपने गवाये
मगर तुम न आये मगर तुम न आये
सितारों कभी चाँद में ढूँढते हैं
तुम्हें रोज तस्वीर में चूमते हैं
तुम्हारे विरह के सताये हुये हैं
यही गम गले से लगाये हुये हैं
मिलन की रहे आस मन में बसाये
मगर तुम न आये मगर तुम न आये
लो अब शाम होने लगी ज़िन्दगी की
तुम्हीं हो किरण आखिरी रोशनी की
बची आरजू भी यही है हमारी
झलक एक मिल जाये बस अब तुम्हारी
रहे स्वप्न आँखों में अपने सजाये
मगर तुम न आये मगर तुम न आये
08-04-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद