मगर कोई नहीं
बहुत कुछ कहना था… मगर कोई नहीं
पिछली रात के आंगन में मैं रोई नहीं
मन आंगन के पिछले हिस्से में एक दरख़्त है
टंगे रहे तुम चाॅंद बन के और मैं सोई नहीं
इस रात के तलहटी पे है पिछले दिनों की तसबीर
बूझते सितारों के नीचे क्या क्या मैं खोई नहीं
~ सिद्धार्थ