मगध की ओर
कौटिल्य चला वन की ओर,
मंत्र, सूत्र और नीति की खोज में,
मन में जल रहा ज्ञान का दीपक,
धरा पर था राज्य का सपना गहरा।
वन के सन्नाटे में उसने बसा ली
मिथलि की नगर,
जहाँ हर नियम, हर चाल
समाज की रचना के लिए बंधी हो।
मिथिला में बौद्ध चले,
चुपचाप, मौन साधक,
ज्ञान का ज्वार उमड़ता,
आकाश में उठता,
साधना की लहरों पर सवार।
तर्क का तूफान लाया नव क्रांति,
धर्म से विज्ञान का मिलन,
मनुष्य के भीतर नया जीवन।
मिथिला की भूमि पर
विवाद का मंथन,
जहाँ धरा कांपी,
विचारों ने थामी तूलिका,
रचा एक नया पंत।
तर्क की तलवार से कटीं पुरानी जंजीरें,
उभरा नव मार्ग,वेदान्त
जहाँ साधना और विज्ञान मिले।
कौटिल्य वन को जाना,
बौद्ध का नालंदा आना,
मिथिला के विवाद का परिणाम—
यह सब एक महागाथा है,
ज्ञान की यात्रा में
सृष्टि की नई दिशा का अंकुर।
—श्रीहर्ष —-