मकड़ी
शहर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल। मरी-गिरी चाल में आवाज़ करते हुए बाबा आदम के ज़माने के भारी भरकम पंखे सुस्त गति से अपनी सेवाएँ निरंतर प्रदान कर रहे थे, यह बड़े आश्चर्य की बात थी। अस्पताल की छत और दरो-दिवारें न जाने कब से रंग-रोगन की मांग कर रहे थे। यदा-कदा मकड़ी के ज़ाले दृष्टिगोचर हो रहे थे। जहाँ मकड़ियाँ घात लगाये शिकार के फंस जाने की प्रतीक्षा कर रही थीं। नाना प्रकार की बीमारियों से जूझते अनेक रोगी यहाँ वार्ड में भर्ती थे। यहीं कोने के एक बेड पर पश्चाताप की मुद्रा में बलदेव सर झुकाए बैठा था। सामने उसका जिगरी दोस्त अखिलेश खड़ा था। रह-रहकर बलदेव के दिमाग में हफ्तेभर पुरानी बातें घूम रही थीं।
“…. बकवास है सब,” तम्बाकू पीने से कैंसर होता है। पनवाड़ी की दूकान पर लगे सलोगन पर सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए बलदेव हंसा। व्हिस्की का अध्धा जींस की पेंट से थोडा-सा बाहर निकला हुआ था।
“क्यों हंस रहे हो,” अखिलेश बोला।
“हंसू न तो क्या करूँ, जब शराब पीने से कैंसर होता है तो फिर सरकार ने इसपर प्रतिबंधित क्यों नहीं लगाती।”
“तू पागल है सरकार को सबसे ज़यादा इनकम इन्हीं चीजों से तो है।” अखिलेश ने जवाब दिया।
“और हंसू क्यों न? पूरे छह बरस हो गए हैं मुझे शराब और सिगरेट पीते हुए
…” अखिलेश के मुंह पर धुआं छोड़ते हुए बलदेव बोला, “आज तक तो न हुआ … मुझे कैंसर!”
“ज्यादा मत हंस … जिस दिन हो गया, पता लग जायेगा दोस्त,” अखिलेश बोला।
“शाप दे रहे हो … हा … हा … हा …” बलदेव दहाड़े मार के हंसा।
आज परिस्थितियाँ बदलीं हुईं थीं। बलदेव को सचमुच कैंसर हो गया था।
रिपोर्ट देखकर वह न जाने कितने समय तक रोता रहा।
“दोस्त मै समय-समय पर तुझे इसलिए आगाह करता था कि मत पियो शराब-सिगरेट, मगर तुम नहीं माने … अपने बाल-बच्चों के भविष्य का भी ख्याल नहीं किया तुमने।” अखिलेश बोला।
“बाल-बच्चों की ही तो फ़िक्र सता रही है। मेरे बाद उनका क्या होगा?” बलदेव मासूम बच्चे की तरह रोने लगा। छत पर उसकी दृष्टि पड़ी तो देखा एक पतंगा मकड़ी के जाले में फंसा फडफडा रहा है और घात लगाकर बैठी मकड़ी धीरे-धीरे शिकार की तरफ बढ़ रही थी।
“अभी साढ़े आठ बजने वाले हैं बलदेव। मै तो चला दफ्तर को वरना देर हो जाएगी।” सामने लटकी दीवार घडी को देखकर अखिलेश बोला, “रही बात वक्त की तो वह कट ही जाता है … अच्छा या बुरा सभी का …”
बलदेव के बाल-बच्चों का क्या होगा? इस प्रश्न का कोई उत्तर दोनों के पास नहीं था। शायद समय की गर्त में छिपा हो। बलदेव को अस्पताल के बेड पर उसी हाल में अखिलेश वहीँ छोड़ आया। बलदेव ने देखा मकड़ी शिकार पर अपना शिकंजा कस चुकी थी। अखिलेश के जूतों की आहट बलदेव के कानों में देर तक गूंजती रही।