मकान हो गए
जब लोग अपने लोगों से अनजान हो गए।
आपसी रिश्तों में अनेको व्यवधान हो गए।
जब लोग ही जुड़ के रह सके न एक साथ ,
फिर गली ,मोहल्ले,गांव,शहर वीरान हो गए।
सुख चैन लगता है कहीं खो गया है अब ,
अब लोग न जाने कितने नादान हो गए।
हर पीढ़ियों के लोग रहते थे एक साथ,
अब अलग-अलग सबके मकान हो गए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी