मकर संक्रांति
आज फिर आ गई मकर संक्रांति
पता नहीं क्या लाएगी शांति या क्रांति
एक तो तीसरी लहर , दूसरी वर्षा ओले का कहर
इन से आक्रांत है हर प्रहर , क्या गांव क्या शहर
चुन्नू-मुन्नू , मम्मी-पापा , दादा-दादी जाते मेले
जहां दुकानें सजी-धजी और झूले भी अलबेले
पावन नदियों में स्नान पूजन से होते सभी कृतार्थ
मेले में अपनों से मिलकर जीवन होता यथार्थ
सभी जन मेला जाते , नाचते-गाते हिल-मिल कर
गुड़ तिल के लड्डू और लाई खाते मिल जुल कर
बच्चे बड़ी उमंग से पतंगे उड़ाते , पेंच लड़ाते
कट जाती जब कोई पतंग , लूट उसे ले आते
ओम् कहाँ अब ऐसे मेले , सोशल मीडिया में सभी अकेले मोबाइल , टीवी में दुनिया दिख जाती , फिर क्यों जाएं मेले धन्यवाद
ओम प्रकाश भारती ओम्