मकर संक्रांति
ऊंचे आकाश में
लहराती हैं पतंग
पुरवाई पवन के
चलती हैं संग संग
झूम रही सपनों की
डोरी से गाती सी
खेलती अठखेलियाँ
उड़ती मदमाती सी
सूर्य देव लौट रहे
उत्तर अयन में
मकर की संक्रांति से
खुशी है नयन में
लड्डूओं ने दस्तक
दी घर घर द्वारे द्वारे
नदियों में खूब कूद
नहाते बूढ़े बारे
मनभावन गुनगुनी
है धूप सुहानी लगती
धरती की चादर पर
प्रकृति मधुर सजती
पुष्पों की माधुरी से
रंगत लजाई है
मकर संक्रांति की
हार्दिक बधाई है