मकरंद सा
गर सूंघे कोई मुझे तो महकूँ मकरंद सा।
और खाए कोई तो लगूँ कलाकंद सा।।
रस से भरी मुस्कान तेरी मानो हो रसभरी।
खा के थूको तो बिखर जाऊँ गुलकंद सा।।
गर सूंघे कोई मुझे तो महकूँ मकरंद सा।
और खाए कोई तो लगूँ कलाकंद सा।।
रस से भरी मुस्कान तेरी मानो हो रसभरी।
खा के थूको तो बिखर जाऊँ गुलकंद सा।।