मकड़ी है कमाल
मकड़ी का देखो कमाल,
सर्कस दिखाती है बेमिसाल,
छत से लटक-लटक कर,
अदृश्य धागे के बल से,
झूलती है हवा में खुद को संभाल।
मकड़ी है कमाल।….।१।
बुनती है जाल घर के कोने में,
करती है कीट-पतंगों का शिकार,
पतले लंबे पैरों से है चलती,
दिखती है जैसे कोई यान,
देख मकड़ी को होते हैं सभी हैरान ।
मकड़ी है कमाल ।…।२।
दीवार पर सर-पट चढ़ जाती,
चकरी सी प्रतीत होती है तब,
डर कर मकड़ी दौड़ कर भागी,
बुने हुए जाल में आकर छुप जाती ,
मकड़ी को होती नहीं तनिक भी परेशानी ।
मकड़ी है कमाल ।..।३।
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बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।