मंज़िल
रफ्तार से गुजर जाती है ट्रेन
पटरी पर सोते इंसानी जिस्मों पर से
मंज़िल की ओर अपनी
गुम जाती है उनकी भूख और चीखें
पटरियों पर ट्रेन की तेज घड़घड़ाहट में
तब्दील हो जाते हैं जिंदा जिस्म
बेजान मांस के लोथड़े में एक पल में
बनकर रह जाते हैं एक ख़बर
हमेशा की तरह चौतरफ़ा मुंह खोले खड़ी
दुश्वारियां लेना चाहती हैं जिम्मा इसका
खामोश पड़ी हैं रोटियां पटरियों पर
इनको खाए बिना नींद नहीं आती
चले गए हैं वो मजदूर खाए बिना इन्हे
नींद की आगोश में हमेशा के लिए
खामोश हैं जिम्मेदार लोग
मरने वाले मजदूर हैं
पहुंच गए बेवक़्त आखिरी मंज़िल पर
बिना पूरा किए सफ़र ज़िंदगी का अपनी…..