मंज़िल
अपनी ख्वाहिशों को अपने हौंसलों की लगाम देदे,
तू जाकर अपनी मंजिल को ये पैगाम देदे,
कि पालूंगा तुझे इक रोज़ तेरा घौंसला बन कर,
तू चाहे कितना भी अपने परों को उड़ान देदे !!
मैं तेरे इंतेज़ार में ना अपना इक पल गुजारूंगा,
मैं अपने आज से ही अपना कल सवारूँगा,
देखता हूँ कि तू कब तक रूठती है मुझसे,
मैं वो हूँ जो ना कभी हारा है, ना कभी हारूँगा !!
तू आयेगी इक रोज़ मेरे पास ये मैं जानता हूँ,
तेरी रग-रग को मैं तुझसे ज्यादा पहचानता हूँ,
मेरे इरादों को कमजोर समझने की कोशिश ना करना,
मैं पा लेता हूँ हर वो चीज़ जो मैं ठानता हूँ !!
तू अगर आराम से मिल जाये तो बात ही क्या है,
मेरी मेहनत के आगे तेरी बिसात ही क्या है,
ना इतरा के देख मुझे मैं तुझसे तुझको छीन लूँगा,
मेरे ख्वाबों के आगे तेरी औकात ही क्या है !!