मंज़र
इतने रँजों गम में हूँ पर पास वह आते नहीं,
वो मेरा निकला दीवाना जो दीवाना था नहीं,
होश अपना खो रहा पहचान भी जाती रही,
अब सहारा बन रहा वह जो सहारा था नहीं,
वक्त ने बदला है करवट साहिलों की भीड़ पे,
हर कोई है ताक में जिसकी नजर में था नहीं,
दोस्तों समझो जरा अब जो कहानी कह रहा,
चर्च-ए-किरदार उसका किरदार में जो था नहीं,
जुर्म के इस दौर में हम साथ किसके हैं खड़े,
दाम थे खरीदार थे पर दाम में मैं था नहीं,
हैं यहां शोहरत के कितने सब्जबाग़ों को लिये,
पूजते देखा कलन्दर पर वह कलन्दर था नहीं