मंज़र
सीखना चाहते हैं सब दांव मेरा,
खींचना चाहते हैं बस पावँ मेरा,
इस मंज़र से वह घबड़ा ही गया,
पेड़ मांग रहा था जब छांव मेरा,
मैंने रौशनी तक उसको दे डाली,
जो पूछा ही नहीं कभी हाल मेरा,
एक इबादत तो उसके नाम करूँ,
जो रखता है बराबर ख्याल मेरा,
सीखना चाहते हैं सब दांव मेरा,
खींचना चाहते हैं बस पावँ मेरा,
इस मंज़र से वह घबड़ा ही गया,
पेड़ मांग रहा था जब छांव मेरा,
मैंने रौशनी तक उसको दे डाली,
जो पूछा ही नहीं कभी हाल मेरा,
एक इबादत तो उसके नाम करूँ,
जो रखता है बराबर ख्याल मेरा,