मंहगाई
बाजार में आजकल
सबके ऊपर चढ़ गई है।
मंहगाई तेरे नखरे अजीब,
तू मन से उतर गई है।
तुझे छूना कौन चाहे,
अच्छे-अच्छे उडनबाजों के
पर कतर रही है।
मंहगाई तेरे नखरे अजीब,
तू मन से उतर गई है।
बेसहारा बन,
अभाव में रहा,
पालक का कोई
भाव न रहा।
तेरे आगे मुरझा कर
निगहबानी में
आहे भर रही है।
मंहगाई तेरे नखरे अजीब,
तू मन से उतर गई है।
✍️ शिवपूजन यादव’सहज’
ग्राम पोस्ट रामपुरकठरवां लालगंज आजमगढ़ उत्तर प्रदेश।