मंदिर दीप जले / (नवगीत)
याद तुम्हारी
ऐसी, जैसे
मंदिर दीप जले ।
पनहारिन के
चंचल सिर पर
जब गगरी छलके ।
दूनर होती
चाल मधुर तब
स्वेद बिन्दु ढलके ।
ज्यों आनंद
सफलता की डग
घर की ओर चले ।
स्वार्थ चिड़ा
जब फुर्र हो गया
चिड़िया को छल के ।
सुगर चिरैया
की आँखों में
तब ममता ढलके ।
अबुध प्रतीक्षा
के कोटर में
मां का प्यार पले ।
भजनों की
उसनींदीं रातें
भगतों के भुनसारे ।
सुगर-सलोनी
भोली चितवन
थुनियाँ के उलकारे ।
दिन पहार-सा
उतरत-उतरत
जैसे शाम ढले ।
याद तुम्हारी
ऐंसी, जैसे
मंदिर दीप जले ।
००००
शब्दार्थ – दूनर – दोहरी, स्वेद – पसीना, सुगर – चतुर, चिरैया – चिड़िया, कोटर – घोंसला, उसनींदीं – उनींदी, थुनियाँ – मंडप की लकडी, उलकारे – ओट, पहार – पर्वत, उतरत – उतरते हुए ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली), सागर
मध्यप्रदेश ।
मो – ८४६३८८४९२७