*मंथरा (कुंडलिया)*
मंथरा (कुंडलिया)
मारी मति जिसने बुरी, हुई मंथरा नाम
जिसके सिर पर यह चढ़ी, उसका काम तमाम
उसका काम तमाम, पाठ उल्टा पढ़वाती
शत्रु नेह-परिवार, राम को वन भिजवाती
कहते रवि कविराय, चाल खेली कटु सारी
देती जिसे सलाह, पूर्ण मति उसकी मारी
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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