मंथन
मंथन एक प्रक्रिया है कारगर.
जिससे निकलती है अच्छाई ही उत्तरोत्तर.
मंथन से निकलता है पहले गरल.
अंत मे निकलता है अमृत तरल.
हर चीज मे छुपे होते है अच्छे बुरे तत्व.
मंथन करणे से ही होता है अलग सत्व.
मन मे भी आते जाते है अच्छे बुरे विचार.
घटना व्यक्ती स्थिती होती है उनका आधार.
गतानुभवो का भी होता है उनमे स्थान.
जैसे होते है अनुभव वैसेही होते है विचार निर्माण.
इसीलिए हमे करना चाहिए वैचारिक मंथन.
तभी होगा उनमे से बुरे विचारो का दोहन.
मंथन के लिए चाहिए होती है बुद्धीरुपी मथनी.
बुद्धी की कसोटीपर करणी चाहिये विचारो की छाटणी.
मंथन से निकलता है पहले मल.
यही होता है बुरे विचारो का गरल.
गरलरूप से निकलता है जमा हुआ कचरा.
और धीरे धीरे होते जाता है बुरे विचारो का निचरा.
जब हॊ जाता है जमा हुये हलाहलका दोहन.
तब निर्माण होता है मन मे सकारात्मक रुझन.
मंथन से होता है सारासार विवेक जागृत.
और बुराई की ओर होता नही मन प्रवृत्त.
अंतकरण मे उत्पन्न होती है शांती और समाधान..
और भविष्य में होता नही कभी बुरे विचारो का व्यवधान.
मनसे निकल जाता है जब अशांतिका सुंभ.
वही है मंथनका सार रुपी अमृतकुंभ.