मंत्री जी की वसीयत
मंत्री हो या संत्री जैसे बुढ़ापे की ओर पग बढ़ाते हैं
सबसे पहले पहल अपना वसीयत ही लिखवाते है
ऐसे में एक मंत्री जी के वसीयत की बात आती हैं
मंत्री जी नें बहुत सोच विचार कर एक up to date
वकील को बुलवाया और कुछ इस प्रकार का वसीयत लिखवाया
मैं कुरसी प्रसाद वल्द लालची प्रसाद पूरे होशो हवास में इकरार नामा करता हूँ, मेरी जवानी का एकमात्र भूल, जनता जर्नादन और मेरे बीच का हावड़ा पूल फलां-फलां चीज का नामे हकदार होगा
समाज में रहकर समाजिकता को भूल जाना
मानवता की भीड़ में मानवता को भूल जाना
सभी नीतियों से नाता तोड़ राजनीति को अपनाना
घोटालो में कमी होने से पहले भष्ट्राचार में लिप्त हो जाना
खंडन छपते तक रिश्वत कांड या हवाला में लिप्त हो जाना
अंतिम सांसों तक कभी इन सब से मुंह न छुपाना
तभी खानदानी पालीटिशियन कहलायेगा और मेरा और अपने खानदान का नाम बढ़ायेगा
वसीयत को देख कर चौंक न जाना, गलतफहमी का शिकार न हो जाना
क्योंकि मैंने जुगत लगायी है तुझे आयकर और ईडी के छापों से मुक्ति दिलाई है
पैसा तो हाथ का मैल है कभी हेड तो कभी टेल है
इसलिए नगदी की वसीयत मेरे जाने के बाद ही पढ़ना
वकील तो अपना है पर आदत से मजबूर है
इसलिए विश्वास कर नहीं सकता , इसलिए नगदी, चल- अचल संपत्ति का ब्यौरा लिखवा नही सकता, तुझको और खुद को जेल में डलवा नही सकता
जीते जी तुझे और खुद को दिवालिया बनवा नही सकता
इसलिए यही कहूंगा मेरे लाल इस वसीयत को पूरे मन से अपनाना
कही मामला फंस जाये तो ऐसे ही किसी वकील से अपने मन की उलझनों को सुलझाने
और कुछ कहने को कुछ नहीं रखा है बाकी तुमको स्वयं सब कुछ देख रखा है