मंटो
उस रोज़ घर में घुसते ही सब कुछ अस्त व्यस्त मिला सारा सामान इधर उधर बिखरा था।दरवाजे पर मोंदा गिलास था कंघा कुर्सी के नीचे और बिस्तर पर गहरी सलवटे थी मानो अंदर बाहर सब एक-सा हो रहा था।अंतिम बार उसे तीन महीने पहले देखा था लगता था वो सरहद पार से लौट जायेगा पर उसके हाथो की कारीगरी
उसकी हाथों की तहरीर आज भी वैसे ही थी जैसा उस समय!समय बीत जाता है इंसान की फेहरिस्त में वरीयता का क्रम ऊपर से नीचे कब चला जाए कोई भरोसा नहीं मैली खिड़की से बाहर झांकने के लिए उसने बाहर देखा था पर
वहां स्वयं का उदास चेहरा ही मिला।वो पिछली बातों को सोच कर सुबक रहा है कि अब वो लौटेगा या नहीं लेकिन हर एक बात को मन पर ले लेना उसकी आदत ही बन गयी थी।जैसे ही बिछी खाट पर से वो उठा चर्र….. की आवाज गहरे सन्नाटे में गूंज गयी उसकी आंखे नम हैं चेहरा आंसुओं से भर गया है।कल से नया जीवन होगा एक बार फिर पहले सा कुछ अलग तन्हा-सा जो दीवारों से या किताबों से बतियाता था पर जीवन तो यों भी चलता ही है।
मनोज शर्मा