मंजिल
कविता —मंजिल
मंजिल पाने का ना कोई मुमकिन
जब नींव, इरादें की ईट से
मजबूत हो ,
पाने का मन मे एक प्रलय की
तरह बहता एक सन्नाटा हो।
कुछ करने का मन पर लबादा हो,
पाने का मन से एक सौदा हो ।
मन रूपी गुब्बारे में एक ताजगी
महकी महकी दृढ़ निश्चय की
आस हो,,
दिल मे सफलता का परचम दूर
नही बस मन के पास हो।।
कठिनाइयों के उधल पुधल मार्ग
होगें
राहों में कांटो के कई झाड़ होगें
चलना उसी पर फूल समझकर
हार के आगे जीत के पहाड़ होंगे।
सत्मार्ग की गलियों में चलते जाना
चाहे दूर से ही झूठ का अंधेरा हो,,
ठोकर खाकर गिरना नही,
सम्भल कर जाना उसी पर जो
जलता सत्य चिराग का बसेरा हो।
सीढिया चाहे पैरो के नीचे न हो
पर लक्ष्य की डोर जमीन से न
टूटेगी
दौड़कर हवाओं से टकराना जाना
तुफानो से ही मंजिल तुझे मिलेगी
मंजिल पाने को जज्बा कभी हारा
नही
वो तेल, बत्ती के सहारे चढ़ा पर
दीया बुझा नही ,,
बुझाने को तो विरोधियो की आंधी
चलेगी ,
,,जब जाकर तुझे मंजिल मिलेगी,,
जब तुझे मंजिल मिलेगी
जब तुझे मंजिल मिलेगी ।।
✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित मौलिक रचना
काफिराइट सुरक्षित
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