मंजिल
भूल के अपने दर्दों-गम को
मैं भी उडना चाहूँ।
हे लाखों उम्मीदें जिस दिल में
मैं भी उससे जुडना चाहूँ।
लगते हे कितने प्यारे ये आसमान-तारे
मैं भी जाके उनके पास उन्हें छूना चाहूँ।
चमक रहे थे जो जुगनू की तरहा
मैं भी उनकी तरहा चमकना चाहूँ।
हे जितने भी खवाब इस दिल में
मैं सब सच करने चाहूँ।
हे धुन्धला-सा आसमान मगर
मैं उसी खुले आसमान के नीचे जीना चाहूँ।
पा ना सका कभी जिसे कोई
मैं भी उसे पाना चाहूँ।
मंजिलेें हे करीब जिनके
मैंं भी उनकी मंजिल बनना चाहूँ।