” मंजिल – रास्ता “
इस मंजिल और रास्ते की खोज में ,
ना जाने कितने मुसाफ़िर घर से निकल गए ।
मंजिल की तलाश में कई नए अवसर सामने आए ,
मंजिल का रास्ता भूल अवसर अपना आए ।
चले थे मंजिल का सपना सजाए ,
भेड़ चाल में अपना विवेक ना लगा पाए ।
जल्दी की सफलता के लिए ,
अपना संतुलन बिगाड़ आए ।
अपनी गलती खुद ही समझ ना आए ,
पल भर में दुसरो पर आरोप लगाए ।
अपना अस्तित्व ना जान पाए ,
खुद को दिखावे में बदल आए ।
ना मंजिल मिला ना रास्ता ,
सफर में मुसाफ़िर खुद को ही खो आए।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली