मंजिल बहुत करीब है
मंजिल बहुत करीब है
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मंजिल बहुत करीब है,
सोये मिरे नसीब है।
खुद पर यकीं नही रहा,
भाग्य ही बदनसीब है।
कोई सखा मिला नहीं,
दुनिया बड़ी अजीब है।
अब रह गया ज़मीर है,
दिल का नहीं ग़रीब है।
सीरत कहीं न पास है,
दुश्मन बना हबीब है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)