मंजिल तक पहुँचाना प्रिये
#शीर्षक:-मंजिल तक पहुँचाना प्रिये ।
दलदली खाई में सुबह गिरती,
शाम तक निकलना पड़ता है,
घर – कविता अपनी सुरक्षित
प्रतिदिन लिखना पड़ता है।
परिवार छोड़ ठिकाना कहाँ?
लिखने का कोई बहाना नहीं,
रस-छंद-अलंकार सुशोभित,
भावना छोड़कर जाना नहीं ।
ज्ञान भण्डार शून्यकाल है,
समस्या का निराकरण करो,
रास्ते मंजिल तक पहुंचें कैसे,
प्रेम भाषा का व्याकरण करो।
है अनुभव-सागर में नहाना,
आश्वस्त कर लगाना हिये,
साधिका हूँ करती तेरी साधना,
मंजिल तक पहुँचाना प्रिये ।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई