मंजिल की तलाश में
मंजिल की तलाश में
दिन रात लगा हूं
खुद को जानता हूं कितना विश्वासी हूं
पल-पल पर जगा देते हैं स्वप्न मुझे
उसी समय उठ खड़ा हो जाता हूं
लग जाता हूं काबिलियत के रास्ते
जुनून सी जिद्द है मुझ में
ना कोई है ताकत ऐसी जो हरा सके मुझे
हौसला जिंदा है मुझ में जब तक पथ पर कायम हूं
अटल संकल्प लेकर चला हूं
जाकर पूर्ण करना है
कायरता से भीड़ जाता हूं
पत्थर को भी पिघला देता हूं
समुद्र को पार करने का भी साहस रखता हूं
खुद को जानता हूं,कितना साहसी हूं
कभी हार जाता हूं तो कभी बिखर जाता हूं
जितने की होड़ में फिर से सिमट जाता हूं
रुकने का नाम नहीं डटने का साहस है
अध्यात्म का आभास है सकारात्मकता की अनुभूति है
इनको पाकर निखर जाता हूं
प्रवीण सैन,नवापुरा ध्वेचा
बागोड़ा (जालोर)