** मंजिलों की तरफ **
मुक्तक
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मंजिलों की तरफ कुछ कदम जब चले।
भाव मन में बहुत प्रीतिकर थे पले।
था समय भी सहज खुशनुमा हो गया।
खुश्क थे मेघ जब हम गये थे छले।
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दूरियां कम न जब हो सकी देखिए।
जिन्दगी थी बहुत ही थकी देखिए।
हम तड़पते रहे आस की प्यास में।
क्यों न नजरें मिली आपकी देखिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/१०/२०२३