मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
सोचता क्या हैं तू, बन संघर्ष का राहीं
चक्र हैं घटना क्रम, मिश्रित सफल कहानी
बहा कर देख ले, तन सीकर का पानी
सपना सजा के पूर्ण कर, प्रतिज्ञा बना निशानी
कुनबे पर तू समर्पण, कर अनुभवी जवानी
वसंत के आगमन में, महके पुष्प क्यारी
आशीष से, फले समृद्धि, वैभव लक्ष्मी प्यारी
इंजी.नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)