मंजर
आसमान को ऊंचा रहने दो ना ,
बादल को खुद को भिगोने दो ना l
हवाओं को कुछ कहने दो ना ,
आज आँखों को भी खूब बहने दो ना l
कल पता क्या मंज़र होगा ,
होगा सागर या बंजर होगा l
खुद को समझाये क्यूँ वो बातें ,
जिन बातों से मन पिंजर होगा l
आग नहीं बारिश मांगती है ,
ख्वाइशें बस एक सिफारिश मांगती है l
अब दुनिया को भी कुछ कहने दो ना ,
खुद के आगोश में खुद को रहने दो ना l
दिव्या