मंच पर मेरी आज की प्रस्तुति
मंच पर मेरी आज की प्रस्तुति
इक महकता ख्वाब हूंँ
या फ़िर माहताब हूंँ
मैं गुलों का रंग
या फ़िर आफताब हूंँ
आसमां हूंँ
या फ़िर इक पूरी जमीन हूँ.
बादलों का रूप
या हवा की रफ्तार हूंँ
एक धूप का टुकड़ा
या फ़िर ठंडी छांँव हूंँ
मैं चमन की बहार और करार हूंँ
मैं जुनून की हद हूँ
और मैं ही प्यार हूंँ
सुर्ख खून हूंँ
या दहकती आग हूंँ
मैं सफेद दिन हूंँ
या फ़िर काली रात हूंँ
मैं ही चांँद…. मैं ही सूरज
या आबे हयात हूँ
प्यार की जागीर हूंँ
और तेरी खरीद हूंँ
मैं जन्म की ख्वाहिश हूंँ
और तेरी हसरत हूंँ
मैं पलक का ख्वाब हूंँ
या महकता ख्याल हूंँ
तेरी हथेलियों में बंद
लकीरों में छुपी हुई
जब चाहे मुझको ढूंँढ ले
तेरा ही प्यार हूंँ ।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित स्वरचित अप्रकाशित मौलिक रचना – – सीमा वर्मा)