#मंगलकामनाएं-
#मंगलकामनाएं-
★ वर्षा विगत शरद ऋतु आई।
[प्रणय प्रभात]
आज आश्विन माह के शुक्ल पक्ष का अंतिम दिवस है। तिथि है पूतम की, जिसे “शरद पूर्णिमा” कहा जाता है। इस पर्व को “शरद ऋतु” की अगवानी के तौर पर “शरद-उत्सव” के रूप में मनाया जाता है।
पैराणिक मान्यताओं के अनुसार आज चंद्रदेव अपने सबसे दिव्य स्वरूप में होते हैं। जो अपनी धवल, स्निग्ध रश्मियों के माध्यम से धरती पर अमृत-वृष्टि करते हैं। इसी धारणा के अनुसार दूध, चावल की मेवायुक्त खीर बना कर चांदनी में रखी जाती है। जो ब्रह्मकाल तक विधु-रश्मियों के प्रभाव से अमृत-तुल्य हो जाती है और आयुर्वेद के अनुसार दिव्य औषधीय गुणों से भरपूर हो जाती है। जिसे प्रातःकाल भगवान श्री हरि को नैवेद्य रूप में अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। जो रोग-नाशक व आयुवर्द्धक होता है।
यह अलग बात है कि अब इस पर्व ने अपने मूल स्वरूप को खो दिया है। घरों व देवालयों में खीर का भोग लगा कर वितरित आज भी किया जाता है, किंतु इसके लिए सुबह की प्रतीक्षा नहीं की जाती। शीतल होने से पूर्व बांटी व खाई जाने वाली खीर मात्र एक प्रसाद होती है। वो भी केवल प्रतीकात्मक।
एक समय हमारे पूर्वज इस चांदनी रात सुई में धागा डाल कर अपनी नेत्र-ज्योति को बढाने का अभ्यास व प्रयास भी करते थे। जो अब भूली-बिसरी बात बन कर रह गया है। खीर को चांदनी में विराजित देव-प्रतिमाओं के समक्ष रख रात भर भजन-कीर्तन करने का समय भी श्रद्धालुओं के पास नहीं बचा है। “शरदोत्सव” के नाम पर संगीत या साहित्य की सभाएं भी अब नहीं के बराबर सजती हैं। शीतल के बजाय गर्मा-गर्म या गुनगुनी खीर खाने तक सिमटे इस पर्व को अब केवल एक परम्परा के निर्वाह के नाम पर दायित्व की इति-श्री भर माना जा सकता है।
इन परिवर्तनों के बाद भी आप सभी को “शरद पूर्णिमा” पर्व की शीतल व निर्मल मन से धवल भावयुक्त मंगलकामनाएं। प्रभु श्री चंद्रदेव सभी के हृदय व मानस के तमस व दग्धता का हरण करें। यह हमारी आत्मीय प्रार्थना है। जय श्री चंद्रनारायण।।
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-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)