भ्र्म
आँखों का भ्र्म था,
तू मुझमें बहुत कम था,
मैं,मैं ना थी,
मैं तो तू ही थी,
पर तू, तू ही था,
मैं ना थी,
भ्र्म का मायाजाल था फैला,
यथार्थ का धरातल था नम,
हाँ, तू था मुझमें थोड़ा कम,
कम ज्यादा कहाँ !
तू था ही नहीं,
तू , तू था,
तेरी समझ में तू ही सर्वोपरि था,
आँखों का, दिल का महज भ्र्म था,
तू यकीनन मुझ में कम ही था