भ्रातृ चालीसा …
भ्रातृ-चालीसा —
भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
भाई में बसती सदा, हम बहनों की जान।।
रिश्ता भाई-बहन का, सबसे पावन जान।
इसके जैसा जगत में, मिले नहीं परमान।।
सबसे उजला निर्मल नाता।
भाई-बहन का जग-विख्याता।।१।।
भाँति-भाँति के, जन जगती में।
भाँति-भाँति के, मन जगती में ।।२।।
नियामकों ने, नियम बनाए।
सोच-समझ, परिवार बनाए ।।३।।
चुन-चुन गढ़ीं, सुदृढ़ इकाई।
मात- पिता, भगिनी औ भाई।।४।।
एक वृंत पर, खिले दो फूल।
एक ही मृदा, एक ही मूल।।५।।
सबसे प्यारा नाता जग में।
एक खून दौड़े रग-रग में।।६।।
रिश्ता है ये सबसे पावन।
जैसे सब मासों में सावन।।७।।
एक मातु के हम-तुम जाये।
अपने साथ मुझे तुम लाये।।८।।
लिखे- पढ़े- खेले संग – संग।
देखे जीवन के रंग – ढंग।।९।।
तुम बचपन के साथी मेरे।
रहना साथ अंत तक मेरे।।१०।।
आँख खुली तो देखा तुमको।
आँख मुँदे तक देखूँ तुमको।।११।।
भाई तुम रक्षक बहनों के।
तारे हो उनके नयनों के।।१२।।
तुम्ही बहन के पहले हीरो।
तुम बिन दुनिया लगती जीरो।।१३।।
बुरी नजर से देखा जिसने।
सबक सिखाया उसको तुमने।।१४।।
तुम पर कोई आँच न आए।
हर मुश्किल से प्रभु बचाए।।१५।।
साथ तुम्हारा नित बना रहे।
ये माथ युगों तक तना रहे।।१६।।
राखी सदा कलाई सोहे।
बहना हर पल रस्ता जोहे।।१७।।
जब-जब मुझपे विपदा आई।
दौड़े आये, न देर लगाई।।१८।।
जब-जब गिरा मनोबल मेरा।
पाया तब – तब संबल तेरा।।१९।।
पति, संतान, पिता या माता।
कोई न इतना साथ निभाता।।२०।।
अश्रु बहन के देख न पाते।
सम्मुख विधि के अड़ तुम जाते।।२१।।
बिना स्वार्थ दौड़े तुम आते।
पिता तुल्य सब फर्ज निभाते।।२२।।
तुमसे रिश्ते-नाते औ रस।
तुम बिन दुनिया होती नीरस।।२३।।
भाई -दूज पर्व अति पावन।
भर जाता खुशियों से दामन।।२४।।
शरारतें, यादें मन – भावन।
राखी लेकर आता सावन।।२५।।
स्मृतियाँ बचपन की लुभाएँ।
परत दर परत खुलती जाएँ।।२६।।
सोंधी-सुगंधित-सरस-सुवास।
तन-मन में भर देती उजास।।२७।।
निज बहन की आन की खातिर।
रावण रहा सदा ही हाजिर।।२८।।
रखी बहन के नेह की लाज।
वीर हुमायूँ पर हमें नाज ।।२९।।
हर नाते से बढ़कर भ्राता।
हर विपदा में बनता त्राता।।३०।।
माँगूँ एक न हिस्सा तुमसे।
जुड़े रहो तुम पूरे मुझसे।।३१।।
बना रहे नित नेह तुम्हारा।
बना रहे घर बार तुम्हारा।।३२।।
बँधी कलाई, नेहिल राखी।
बने अतुलित प्रेम की साखी।।३३।।
धीर-गंभीर, अति बलशाली।
रहो सुखी, नित वैभवशाली।।३४।।
भाई तुम पर नेह अगाधा।
हर सुख-दुख तुमने ही साधा।।३५।।
मात-पिता का तुम्हीं सहारा।
तुम बिन उनका कहाँ गुजारा।।३६।।
धुरी तुम्हीं हो पूरे घर की।
पाओ खुशियाँ दुनिया भर की।।३७।।
कभी न अपना नेह छुड़ाना।
कभी बहन को भूल न जाना।।३८।।
बच्चों के तुम मामा प्यारे।
तुम चंदा तो वो हैं तारे।।३९।।
सब बहनों के प्यारे भाई।
कृपा करें तुम पर रघुराई।।४०।।
धन-धान्य भरपूर रहे, रहे कुशल आबाद।
सुखी-स्वस्थ-समृद्ध रहे, दो प्रभु आशीर्वाद।।
जुग-जुग तक जग में रहें, मुद-मंगल त्यौहार।
मन-मानस करते रहें, खुशियों की बौछार।।
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“मनके मेरे मन के” से
(सर्वाधिकार सुरक्षित )