भ्राजक
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
भ्राजक
तुने छूकर तन मेरा मैला कर दिया
धो धो कर हार गई परेशान कर दिया
एक सखी थी निपट अकेली मैं तो तेरी साजन
कन्चन काया थोथी माया पंकज कर दिया
श्वेत धवल हिम सुता परायण मन की
कौंच कौंच कर पूरे तन को घायल कर दिया
प्रभु की करनी हिय से मृगनी नैनन अति उदार
मेरी इस शीतल वसना सी देह भई उत्ताल
तुने छूकर तन मेरा मैला कर दिया
धो धो कर हार गई परेशान कर दिया
जब जब आया शंकित मन से दुविधा में था डाला
ना सोया ना प्रेम किया मन शापित सा कर डाला
रे अघोरी चिट्टी छोरी जोगन दिया बनाय
तन का काला मन का काला रस चूस चूस उड जाये
तुने छूकर तन मेरा मैला कर दिया
धो धो कर हार गई परेशान कर दिया
तुझ से हारी हुइ बाबरी अब के ना मानूंगी
प्राण देऊंगी लड के मरूंगी तुझ संग न रहूंगी
तुने छूकर तन मेरा मैला कर दिया
धो धो कर हार गई परेशान कर दिया