भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार
ऐसा क्या है जो हम मिटा नहीं सकते,
यह सर्व व्यापक भ्रष्टाचार,
कलयुग का राजा चारों तरफ इसका बोलबाला,
अजर अमर इसका विस्तार,
यह सब व्यापक भ्रष्टाचार,
करे कोई परिश्रम, और हो जाए कोई मालामाल।
चमकता सोना खानकता पैसा,
यहां तो सब कुछ दिखता है,
नैतिकता ताक पर रखकर,
लग रहे हैं ताक,
लाख का करोड़ ,
करोड़ के आगे,
न जाने कितनी शून्य लगाने की होड़ लगी है,
लालच का यह माया जाल,
सच्चाई का करता व्यापार,
लगता जैसा ले ही जाएगा,
सबके दिल का चैन में चैन की सास ।
नई पीढ़ी को जगाना है,
करना है यह बंद सर्व व्यापक भ्रष्टाचार,
आओ अपनी सोच बदलकर,
समाज का उद्धार करें,
नए युग का आह्वान करें, ।