भ्रम
भ्रम रोग है ऐसा मनोविकार,
नही होता इसका कोई आकर।
भ्रम रोग से ग्रसित व्यक्ति जीता
है अलग दुनिया में,
फर्क नही कर पाता काल्पनिकता
और वास्तविकता में।
एक गलत विश्वास ही भ्रम की
जननी है,
भर्मित होने वाले कि हर चाहत
ही मर जाती हैं।
बना लेता है वो अपनी अलग
पहचान,
अपने आप को समझता है सबसे
महान।
कुछ ऐसे ही मैंने भ्रम की रिश्ते
पाले हैं,
जो कहने को तो अपने वाले है।
लेकिन देखते है संदेह की नजर
से,
सोचता हूं कैसे बच पाऊंगा उनके
कहर से।
उनकी कुण्ठित मानसिकता का
होता रहा हु शिकार मैं,
दिन रात बस यही सोचता हूं
कैसे दिलाऊँ उन्हें विश्वास मैं।
भ्रम की पट्टी बांध रखे हैं अपने
आंखों पर,
झूठ का मोटा आवरण ओढ़ रखा
है उन्होंने अपने उपर।
भ्रम की इस बीमारी का नही
है कोई इलाज,
मेरे पीछे पड़कर क्यों कर
रहे हो अपना वक़्त बर्बाद।
जियो और जीनो दो यही है
विनय,
नही तो भ्रम में ही खत्म हो
जाएगा जिंदगी का कीमती समय
(स्व रचित)……….आलोक पांडेय गरोठ वाले