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25 May 2024 · 1 min read

भ्रम

बगर तेरी इजाजत के हिलता नही है पत्ता.
सारे चराचर पे चलती है तेरी ही सत्ता.
ग्रंथ और पुराणुका भी यही है वचन.
ऋषीमुनी और पैगंबरोने भी यही किया है कथन.
हर घटना का भगवन तुही होता है करता धरता.
युगो युगो से स्थापित है तेरी ऐसी ही महत्ता.
गर भगवन पत्ते को भी लगती है तेरी अनुमती.
तो अन्यायी के अन्याय मे होती है क्या तेरी सहमती.
तेरी ही सहमति से भगवन होता है क्या अत्याचार.
अनुमती लेकर दुराचारी करता है क्या दुराचार.
इन सारे प्रश्नो से मेरा भ्रमित हुआ है मन.
शंका समाधान करके कर तू संदेहो का निरसन.
क्या सच और क्या है झूट इसका हो नही रहा है आकलन.
हालात देख कर तुझ पर विश्वास करने का होता नही है मन.

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