भ्रम
हर कोई अपने आप के एक भ्रम मे जी रहा है ,
कभी संबंधों के, तो कभी अनुबंधों के ,
कभी अपेक्षा के, तो कभी प्रतीक्षा के ,
कभी भाग्य के, तो कभी त्याग के ,
कभी वरीयता के , तो कभी गोपनीयता के,
कभी सम्मान के , तो कभी अभिमान के,
कभी प्रेमासक्ति के, तो कभी स्वशक्ति के ,
कभी व्यवहार के , तो कभी विचार के ,
कभी सुंदरता के , तो कभी संपन्नता के ,
कभी मान्यताओं के , तो कभी धारणाओं के,
कभी कल्पनाओं के , तो कभी भावनाओं के,
कभी स्वामित्व के , तो कभी आधिपत्य के ,
कभी सिद्धि के , तो कभी प्रसिद्धि के,
कभी विजेता के , तो कभी श्रेष्ठता के,
मानवजीवन आविर्भाव से अवसान तक,
इस भ्रम से पार न पा सका अब तक।