खुद को अभिव्यक्त करने के लिये पढ़ें
स्वप्न दो किस्म के होते है,
एक जिनको हकीकत में बदला जा सके,
दूसरे जो सिर्फ खयाली पुलाव हो,
विचारों के साथ भी कुछ ऐसा ही है,
एक जिन्हें कृत्य करके पूरे किए जाये,
दूसरे आधार-रहित,
जिनका कोई वजूद नहीं,
कल्पना के साथ भी कुछ ऐसा ही है,
जो सिर्फ मनोरंजन एवं आत्म-संतुष्टि के लिये की जाये,
जिनका हकीकत से मतलब नहीं,
वो बात अलग है,
लोगों की ज्यादा संख्या इसी श्रेणी वालों की है,
धर्म वा राजनीति पर बहस सार्थक नहीं है,
मकसद किसी की आस्था एवं विश्वास को
विचलित करना नहीं हे।
फिर भी जो देखा
जो पाया उसे पढ़कर आकलन अवश्य करें?
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एक परम्परा पैदा हो गई,
उससे हटकर इंसान को कुछ सोचने की जरुरत नहीं,
यही गलत है
एक परंपरा उत्पन्न हुई,
परंपरा सडांध है.घुटन.
इससे बाहर आदमी सोचता नहीं,
जीवन का अधिकतर समय यंत्रवत गुजर जाता है,
जिसे बेहोशी कहना ठीक होगा.
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गृहस्थ माता-पिता,
माता-पिता,गुरु, भगवान,
शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिकों
को जन्म देता है,
अस्तित्व, प्रकृति सबके लिये समान है,
इसमें मील के पत्थर हम खुद रखते है,
मापदंड व्यवाहारिकता हमारी अपनी है,
अस्तित्व सभी तत्वों का अपना है,
जिसे हम वजूद कहते है ?
प्रभाव किसका है ?
उन सबका जो आकार में हैं,
निराकार आकार को जन्म देता है,
वह प्रकृति वा अस्तित्व की देन,
निराकार अलग-अलग योनियों में
उस सत्ता के कृत्य समान ..जैसे स्वायत्त सत्ता,
जब कोई जीव निज-सत्ता में रहता है,
अपने परिप्रेक्ष्य में स्वस्थ स्थिति में खुद करता है,
जैसे:- खाना, मल-मूत्र त्याग, मैथुन संतति, सोना-जागना या कोई करवाता है !
वातावरण एवं प्राकृतिक-आपदा भक्त वा नास्तिक के लिये अलग-अलग नहीं होती,
देख ही रहे
राम रहीम लड रहे है
धार्मिकता कुछ अव्यवस्थित मानसिकता वाले लोगों के लिये आत्मग्लानि दूर करने का एक जरिया है जो उन्हें गैर-जिम्मेदार बनाता है,
किसी ने कह दिया एवं स्थिति पैदा कर दी,
ये करोगे तो ये होगा वो ..तो वो है,
किसी ने करके देखा हो तो बताओ,
परिणाम आया हो तो बताओ,
झूठी आत्म-संतुष्टि …परीक्षा आने पर वह भी टूट जाती है,
जीवन को जिया किसने ?
ढोया जा रहा है !
जिसने मृत्यु को याद रखा है,
जिसे जीवन से ज्यादा मौत की फिक्र है,
जो हमेशा संरक्षण में रहता है,
जो भगवान रुपी आश्रय में जीता है,
वह केवल बंधन में जीता है,
कभी मुक्त नहीं होता
वह न कभी खुद को जान पायेगा,
खुदा की तो बात छोडिये !
किस भ्रम में जी रहे हो डॉक्टर महेन्द्र
तुम्हें जागना ही होगा …